बिहार सरकार, मंत्रिमण्डल सचिवालय, राजभाषा विभाग द्वारा प्रकाशित डाॅ. नीलम श्रीवास्तव का गीत- संग्रह " बात करती शिलाएँ " एक अद्वितीय रचना है. नीलम ने अपनी रचनाधर्मिता का बखूबी निर्वहण किया है. चौसठ पुष्पों में संकलित यह गीत संग्रह तंत्रशास्त्र की चौसठ आराध्य योग शक्तियों की तरह विभिन्न भाव- भंगिमाओं का प्रकृति के पटल पर लयबद्ध निरुपण ही नहीं बल्कि स्वयं को महा प्रकृति के साथ जीने का अद्भुत समन्वय भी है. नीलम मेरी सहपाठी रही हैं लेकिन विगत पचास वर्षों में क्षण एको युगायते की तरह हमारा संवाद हो पाया है. उनकी यह सुदीर्घ साहित्य- साधना इतने आयाम छू लेगी, इसकी कल्पना भी बहुत से सहपाठी नहीं कर पाएँगे. प्रकृति के विभिन्न रंगों को राग- रागिनियों की गेयता में समेटे हुए छन्दों के साथ कवयित्री ने भाव- पुष्पों को बड़ी सहेजता से उकेरा है. कहीं उल्लास का उद्दाम वर्णन तो कहीं अवसाद का प्रतिरोपण भी सुन्दर शब्दों में हुआ है. देशभक्ति और सामयिक पीड़ा की अनुगूँज के साथ अध्यात्म की अविरल धारा का प्रवाह भी गीतों में मुखरित हो रहा है. काव्य- शिल्प की दृष्टि से भी यह संग्रह अनुपम है. मैं तो साहित्यकार नहीं लेकिन इतना अवश्य कहूँगा कि कवयित्री ने शब्द- साधना का एक लंबा अंतराल जिया है जो उनकी इस रचना में प्रतिभासित है. मेरी शुभकामना और आशीर्वाद है कि डाॅ. नीलम साहित्य की उन ऊँचाइयों को प्राप्त करें जिनमें जीवन का संगीत निर्झर की तरह गूँज उठता हो.
शुभ आकांक्षी,
कौलभास्कर वीरेन्द्र गिरि
अध्यक्ष एवं महामण्डलेश्वर
विश्व शाक्त संघ
पीठाधीश्वर
श्रीरमाशक्तिपीठम्
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