वेलेंटाइन वीक में चंंद्रेश

 वेलेंटाइन वीक में चंंद्रेश की तीन प्रस्‍तुतियों में आपको कौन सबसे अच्‍छी लगी हमें जरूर बतायें 


ईलाज

स्टीव को चर्च के घण्टे की आवाज़ से नफरत थी। प्रार्थना शुरू होने से कुछ वक्त पहले बजते घण्टे की आवाज़ सुनकर वह कितनी ही बार अशांत हो कह उठता कि, "पवित्र ढोंगियों को प्रार्थना का टाइम भी याद दिलाना पड़ता है।" लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह चर्च में ही प्रार्थना कक्ष की सफाई का काम करता था। वह स्वभाव से दिलफेंक तो नहीं था, लेकिन शाम को छिपता-छिपाता चर्च से कुछ दूर स्थित एक वेश्यालय के बाहर जाकर खड़ा हो जाता। वहां जाने के लिए उसने एक विशेष वक्त चुना था जब लगभग सारी लड़कियां बाहर बॉलकनी में खड़ी मिलती थीं। दूसरी मंजिल पर खड़ी रहती एक सुंदर लड़की उसे बहुत पसंद थी।

एक दिन नीचे खड़े दरबान ने पूछने पर बताया था कि उस लड़की के लिए उसे 55 डॉलर देने होंगे। स्टीव की जेब में कुल जमा दस-पन्द्रह डॉलर से ज़्यादा रहते ही नहीं थे। उसके बाद उसने कभी किसी से कुछ नहीं पूछा, सिर्फ वहां जाता और बाहर खड़ा होकर जब तक वह लड़की बॉलकनी में रहती, उसे देखता रहता।एक दिन चर्च में सफाई करते हुए उसे एक बटुआ मिला, उसने खोल कर देखा, उसमें लगभग 400 डॉलर रखे हुए थे। वह खुशी से नाच उठा, यीशू की मूर्ति को नमन कर वह भागता हुआ वेश्यालय पहुंच गया।

वहां कीमत चुकाकर वह उस लड़की के कमरे में गया। जैसे ही उस लड़की ने कमरे का दरवाज़ा बन्द किया, वह उस लड़की से लिपट गया। लड़की दिलकश अंदाज़ में मुस्कुराते हुए शहद जैसी आवाज़ में बोली, "बहुत बेसब्र हो। सालों से लिखी जा रही किताब को एक ही बार में पढ़ना चाहते हो।"
स्टीव उसके चेहरे पर नजर टिकाते हुए बोला, "हाँ! महीनों से किताब को सिर्फ देख रहा हूँ।"
"अच्छा!", वह हैरत से बोली, "हाँ! बहुत बार तुम्हें बाहर खड़े देखा है। क्या नाम है तुम्हारा?"
"स्टीव और तुम्हारा?"
"मैरी"
जाना-पहचाना नाम सुनते ही स्टीव के जेहन में चर्च के घण्टे बजने लगे। इतने तेज़ कि उसका सिर फटने लगा। वह कसमसाकर उस लड़की से अलग हुआ और सिर पकड़ कर पलँग पर बैठ गया।लड़की ने सहज मुस्कुराहट के साथ पूछा, "क्या हुआ?"
वहीँ बैठे-बैठे स्टीव ने अपनी जेब में हाथ डाला और बचे हुए सारे रुपए निकाल कर उस लड़की के हाथ में थमा दिए। वह लड़की चौंकी और लगभग डरे हुए स्वर में बोली, "इतने रुपये! इनके बदले में मुझे क्या करना होगा?"
स्टीव ने धीमे लेकिन दृढ़ स्वर में उत्तर दिया, "बदले में अपना नाम बदल देना।"
कहकर स्टीव उठा और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। अब उसे घण्टों की आवाज़ से नफरत नहीं रही थी।


प्रेम


प्रेम
रह जाता है
अप्रेम
जब तय करनी होती है परिमित दूरी
और पाना होता है अपरिमित प्रेम।

प्रेम
हो जाता है
क्षीण
जब वो अस्थिर पृथ्वी के
दो ध्रुवों पर हो जाता है स्थिर।

प्रेम
केवल शब्द है
यदि
उसे मापनी है धरती की दूरी
पत्थरों और हृदयों के मध्य गतिशील।

प्रेम
हो जाता है
मृत
जब उत्कंठा हो स्पर्श की
स्व-रक्त हो जाता है हत्यारा।

प्रेम
तभी अमृत है
जब
ईश्वर की स्थिरता सा है
एक कोशिका में भी

और अनंत तक विशाल
जो ये मानसिक प्रेम
बन जाये जो ईश्वरीय
उत्कंठा हो जाये समाप्त
प्रेम हो जाये अ-मृत।



प्रेम

सवेरे जूस का पहला घूँट लेते हुए उसने समाचारपत्र खोला ही था कि एक नये शोध के बड़े समाचार के साथ प्रकाशित तस्वीर से उसकी आँखें कई क्षणों तक हट नहीं पाईं, और उसने जेहन में वर्षों पुरानी बहुत सी बातें याद आ गयीं। उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव से उसकी अस्थिर मनोस्थिति का अंदाज़ा लगा पाना बहुत ही आसान था। आखिर उसने फ़ोन उठा कर एक नंबर डायल कर दिया और सामने से उत्तर आते ही कहा, "सीमा...सतीश बोल रहा हूँ, अभी अख़बार में पढ़ा। तुम्हारे शोध ने तो पूरे देश में तहलका मचा दिया है, दिल से बधाई हो तुम्हें।" दूसरी तरफ कुछ क्षण शांति रही और फिर उत्तर आया, "सतीश... इतने वर्षों बाद!! तुम कैसे हो? तुम्हारा परिवार...? सब अच्छे हो ना!""हां, सब ठीक हैं। तुम बताओ तुम्हारा परिवार कैसा है?"
"तुम्हारा बहुत इंतजार किया था सतीश, फिर इस उम्र में आकर एक प्रेम और हुआ, तब मैनें परिवार बसा लिया। मेरे परिवार के एक नए सदस्य के बारे में तुमने आज अख़बार में पढ़ ही लिया न। धन्यवाद, तुम्हारी बधाई के लिये।"
अब दूसरी तरफ चुप्पी छा गयी थी और वह फोन काटने की हिम्मत जुटा रहा था।
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नाम: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
फ़ोन: 9928544749
डाक का पता: 3 प 46, प्रभात नगरसेक्टर-5, हिरण मगरीउदयपुर (राजस्थान) – 313 002





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