कूका प्रेम बसंत-डॉ मंजु गुप्ता


 

साथ सजना का मिला जब , प्रेम मन में है खिले।

गीत अधरों   पे सजे अब , तार सुर के हैं मिले।।

रंग सभी अब जीवन के , चमन   को महका  रहे ।

फूल गेंदा , कुमुद ,   टेसू , फाग बन  दहका  रहे।। 


साम गीतों की तरह तुम , धड़कनों के हो गए।

शंख ध्वनियों  की तरह  प्रिय ,गगन के  गुंजन हो गए।।

राग से अनुराग की नव , साधना होने लगी ।

कृष्ण  - राधा -  सी उमंगें    , साधिका  होने  लगी।।


डॉ मंजु गुप्ता

वाशी , नवी मुंबई



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