मीठा-मीठा बोल बहुत है-

  मीठा--मीठा  बोल बहुत है।

राजनीति का झोल बहुत है।

समरसता  प्रस्ताव  पगाते,
जातिभेद कर आग लगाते,
संविधान का रोल बहुत है।

प्रगति सुमति की बात करत है,
जन-सेवक  बन घात करत है,
खोल का ऊपर खोल बहुत है।

जतिवादी  कानून   रोज  है,
जातिगोल है, जाति भोज है,
ढोल का अंदर पोल बहुत है।

महजिद के वेतन दे  हरसे,
मंदिर घात करत है, कर से,
हिन्दू ऊपर  टोल  बहुत है।

सभी बराबर  संविधान  से,
भेद-भाव काला विधान से,
ममिला अंदर गोल बहुत है।

सेकुलर नइया  हिन्दू  डोले,
कायर चमचा जय-जय बोले,
जातीय कटुता होल बहुत है।

भ्रष्ट  आचरण, फेंकू  बानी,
वोटतंत्र  की  यही  कहानी,
ढोंगतंत्र  का  मोल  बहुत है।

       ---उमेश कुमार पाठक 'रवि'   
---विश्वामित्र कॉलोनी, चरित्रवन,
           बक्सर, बिहार---802101


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