(सत्य पर आधारित )
प्यार की पाती और वो लम्हें
पहले प्यार की हुई जो सुखद अनुभूति,
शब्दों में कैसे करूँ उसकी अभिव्यक्ति ?
बहुत मादकता भरा वह पल था ,
भावनाओं में बहने का डर था ।
बिना कुछ कहे भी आँखें ख़ुद ही बोले,
अकारण ही मुस्कान अधरों को घेरे ।
उनके दर्शन से मन तृप्त तो हो जाता ,
पर हर क्षण ज़माने का भय भी सताता ।
प्रेम भरे शब्दों को प्रकट कर नहीं पाई,
फिर पाती लिखने की हिम्मत जुटाई ।
लिखी तो प्रेम की पाती बड़े प्रेम से,
पर प्रियतम को उसे दे नहीं पाई ।
बड़ा ही मर्यादित प्रेम था मेरा,
सिर्फ हृदय में था उनका ही बसेरा
मनोभाओं को प्रत्यक्ष व्यक्त नहीं किया,
पर मन में प्रज्वलित रहा प्रेम का दीया l
प्रथम औपचारिक मिलन में ही,
विवाह का तुरंत प्रस्ताव आ गया l
हृदय की कोमल भावनाओं ने फिर,
एक नूतन व सुंदर आकार ले लिया l
अपने प्रेम को पाने की असीम ख़ुशी,
क्या बताऊँ छिपाने से भी न छिपी l
वे थे जीवन के ख़ूबसूरत व सुंदर लम्हें,
जिसने जीवन में प्रेम को पक्के रंग भरे l
विधाता ने ही हमारे नाम एक साथ जोड़े,
उनकी कृपा से हम प्रेम-पथिक बने l
कभी लिखी थी जो प्रेम भरी वो पाती,
थमा दी उसे ही थी वह जिसकी थाती l
-सीमा रानी मिश्रा
हिसार
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