जीवन साथी-समीर उपाध्याय



मां फिसल गई है और पैर में काफ़ी चोट लगी है यह ख़बर मिलते ही विनय दफ़्तर से छुट्टी लेकर सीधे ही अस्पताल पहुंच गया। विनय को अस्पताल पहुंचने में काफ़़ी देर लगी। पूछताछ करने पर पता चला कि मां को दस नंबर के कमरे में एडमिट किया गया है।विनय कमरे में पहुंचकर:-"मां यह क्या हो गया?" (चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थी।) 
मां:-"विनय, होनी को कौन टाल सकता है?आज वृंदा ना होती तो ना जाने मेरा क्या होता?"
विनय:-"मां,वृंदा कहां है?"
मां:-"रिपोर्ट लेकर डॉक्टर साहब से मिलने गई है।अभी आती ही होगी।"
मां:-"विनय तूं शादी के लिए तैयार ही नहीं था। तेरा यही मानना था की आजकल की लड़कियों की अपेक्षाएं बहुत बड़ी होती हैं। मैं इतनी कम तनख़्वाह में अपेक्षाओं को कैसे पूरा कर पाऊंगा?मेरा तालमेल कैसे होगा?देखो,आज वृंदा......................."
विनय:-"हां मां लेकिन....."
इतने में वृंदा कमरे में आई और बोली:-"आप इतने घबराए हुए क्यों है? आपके चेहरे पर चिंता की रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। चिंता करने से होनी को कौन टाल सकता है भला?"
विनय:-"डॉक्टर साहब का क्या कहना है?"
वृंदा:-"बाएं पैर की हड्डी टूट चुकी है। कल ही ऑपरेशन करना पड़ेगा।"
विनय:-"खर्च के बारे में डॉक्टर साहब ने कुछ बताया है?"
वृंदा:-"मैं सारी बातचीत करके आई हूं। तीन दिन तक रुकना पड़ेगा। ऑपरेशन, तीन दिन का रूम का चार्ज और दवाई सब मिलाकर लगभग पचास हजार का खर्चा होगा।"
विनय:-"वृंदा,पैसों का इंतजाम करने के लिए मैं जा रहा हूं। तुम मां के पास यहीं रुको।"
वृंदा:-"आप चिंता मत कीजिए।आप मां को संभालिए। मैं घर जा रही हूं।तीन दिन तक हमें यहां रुकना है इसलिए कुछ चीज वस्तुओं की जरूरत पड़ेगी। मैं मां के कपड़े और जरूरी चीज वस्तुएं लेने के लिए घर जा रही हूं।"
विनय:-"लेकिन मुझे पैसों का इंतजाम करने के लिए जाना होगा।"
वृंदा:-"मैं घर से वापस आऊं तब तक आप यहीं रहिए।"
विनय गहरी सोच में डूबा हुआ मां के बिस्तर के पास रखी हुई कुर्सी पर बैठा था।इतने में वृंदा घर से वापस आई और अपना बटवा विनय के हाथ में थमा कर बोली:-"आपको पैसों का इंतजाम करने के लिए कहीं भी जाने की जरूरत नहीं है।"
विनय:'"वृंदा, क्या है इसमें?"
वृंदा:-"पूरे पचास हजार।"
विनय:-"इतने रुपएं तुम्हारे पास कैसे आए?"
वृंदा:-"आप हर महीने घर खर्च के लिए जो पैसे देते थे उसमें से मैंने कुछ बचाएं हैं और बाकी सिलाई-बुनाई और कढ़ाई करके कमाएं हैं।"
विनय कृतज्ञभाव से भर गया और बोला:-"वृंदा आज तुमने मेरे लिए....."
वृंदा:-"अब आगे एक शब्द भी बोलने की जरूरत नहीं है। मैं आपकी कमजोरी नहीं, ताकत बनना चाहती हूं।मैं आपकी जीवनसंगिनी हूं।सहधर्मचारिणी हूं।फेरे लेते समय सुख-दु:ख में साथ निभाने की प्रतिज्ञा ली है।आज मैंने उस प्रतिज्ञा का पालन किया है।"
विनय एकटक वृंदा की आंखों में आंखें डाल कर देखता ही रहा। वृंदा को अपनी बाहों में जकड़ लिया और बोला:-"जीवन-साथी, जीवन-साथी, जीवन-साथी साथ में रहना।"
                  विनय और वृंदा के बीच के तालमेल को देखकर मां की आंखें भर आई।


समीर उपाध्याय
मनहर पार्क:96/A
चोटीला:-363520
जिला:सुरेन्द्रनगर
गुजरात
भारत
9265717398




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