स्वीकारो बसंत-संतोष शर्मा शान

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हे बसंत तुम मुझ पतझड़ का

निस्वार्थ प्रेम स्वीकार करो 

आगमन तुम्हारा  ' मेरा हृदय से... 

अभिनंदन स्वीकार करो  

बाट जोहती प्रेयसी सी

नहीं सुध रही सुबह-शाम  की

रुठ गया सुख दिवस मेरा...... 

आये हो तो मनुहार करो  

अब हुई प्रतिक्षा अंतहीन

मन व्याकुल ' तन सूख गया

शीश चढ़ा लो अपने या

बाहों में अंगीकार करो   

हे ऋतुराज  !  मुख देख तेरा.... 

है पृथ्वी को अब आस बहुत  !! 

मैं मिल जाऊं तुम संग  , तुम

जग हेतु पर उपकार करो  

आगमन तुम्हारा  मेरा हृदय से  

अभिनंदन स्वीकार करो..... 

अभिनंदन स्वीकार करो  




संतोष  शर्मा  " शान "

हाथरस ( उ. प्र.  )




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