लगाव-श्‍यामल बिहारी महतो

                              कहानी



सुबह का समय था ।बाहर से मेरे कुछ दोस्त आये हुए थे । कुछ खाने पीने के बाद हम साथ बैठे चाय पी रहे थे । तभी हमने देखा दुखना घर आ गया है । वहीं से मैंने उसे आवाज दी-" अरे दुखना ! "

तब वह पानी पी रहा था ।

" आप  अरे कह कर बुलाते हैं उसे बुरा नहीं लगता है ?"

एक दोस्त ने एतराज जताया।

" उसके जन्म के तीसरे दिन से ही हम सभी उसे इसी नाम से पुकारते-बुलाते है । कभी उसने बुरा नहीं माना । 

" तो क्या जन्म के बाद ही आपने उसका यह नाम करण कर दिया था ?"

" हां, उसके जन्म के तीसरे दिन ही  यह नाम रखा गया था । तब से वह इसी नाम से जाना जाता है !"

" कहां गया-आया नहीं ...?"

" आ जायेगा अभी वह कुछ खा रहा है !"

" अपने बेटे का इस तरह का नाम सुनकर उसकी मां को बुरा नहीं लगता वो आपत्ति नहीं करती है ?

" अब वह  इस दुनिया में नहीं रही !" 

" ओह- सॉ-सॉरी ! हमें मालूम नहीं था "दूसरे ने 

अफसोस जाहिर किया था ।

" कायल रथलाल घार छठियारी लागो ! " गांव की ठकुराइन दीदी सहसा आंगन में टपक पड़ी ‌

" अबकी क्या हुआ दीदी ..?" मैंने जानना चाहा

" आर कि हतअ ! फेर बेटिये भेलअ तो !" लगा बेटी होने से ठकुराइन दीदी भी खुश नहीं थी ।

“ चार तो हो गई । लगता है हमारी भौजी, आधा दर्जन तक देखने के बाद ही बंद करने की सोचेगी । तुम लोग उसे कुछ समझाती नहीं । बेटियां आज बेटों से पीछे नहीं हैं -बहुत आगे बढ़ रही है !

" हमनी कि कहबअ बाबा ! ओकरा नाय पिराय है तो हमरा कि जाय...!" मुंह में आंचरा ठूंस वह हंसते बाहर निकल गई । 

उसके जाते रविदास टोला का रति रविदास पहुंच गया । प्रणाम कर बगल कोने में खड़ा हो गया ।

" क्या बात है ? सुबह सुबह...!"

 " फिर दोनों बचवन के स्कूल में नाम कयट गेलअ...!"

" काहे कटा...? पिछली बार हमने कहा था न कि समय पर महिना पैसा जमा कर देना। .! फिर...?"

" कुआं में काम करल हलिये -तीन महीना से पैसे नाय देल है कि करबअ ...!"

" कितना लगेगा ...?"

" दोनों के सतरह सौ...!"

" आगे से कटना नाय चाही फिर हमरे पास मत आना- लो जाओ..!" 

पांव छू प्रणाम कर रति चला गया । यह देख एक दोस्त का माथा चकरा गया । बोला -" इन लोगों का भी आपके पास आना होता है .?"

" इन लोगों से क्या मतलब है आपका ? अरे ये भी इंसान है । इसे भी समाज में पूरा पूरा जीने का हक है!" 

" फिर भी ऐसे लोगों को अपने से दूर ही रखना चाहिए...!"

" मैं जाती भेद को नहीं मानता हूं आपको पता है...!" मैं थोड़ा गंभीर हो उठा था-" दुखना की मां मरी थी तब यही लोग सबसे पहले मेरे घर पहुंचे थे..। भाई ने बताया था । " 

 " फिर भी ...!"

" दुखना की मां को गुजरे कितने साल हो गए ?" तीसरे दोस्त ने दुखना की मां से फिर जोड दिया था ।

" चार साल बीत चुका है,पांचवां साल चल रहा है...!"

तभी भाई ने आकर पूछा-" खसिया बेचेंगे ? रमजान मियां बाहर खड़ा पूछ रहा है !” 

" साढ़े आठ हजार देगा तो बोलो शाम को मिलेगा ? अभी बाहर से कुछ दोस्त लोग पधारे हैं। । “  

भाई चला गया तो एक दोस्त बोला

" आप दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेते हैं? अभी आपकी उम्र ही क्या हुई है। चालीस में भी चौंतीस के लगते हैं-गबरू जवान है! खूब सूरत है ! पचीस-तीस की कोई भी लड़की आप पर फिदा हो सकती है ! कहें तो मैं खोज शुरू कर दूं ! "

" बाबूजी, आप लोग नहा धोकर खाना खायेंगे या ऐसे ही, खाना बनकर रेड्डी है ?"  पायल बेटी ने आकर पूछा ।

"  मैं तो नहा-धो लिया हूं बेटे, और चाचा लोग भी नहाये से लग रहें हैं ....!"

" हां हां हम दोनों भी फ्रेस होकर ही घर से निकले हैं -बाकी खाना खा लेगें ...!" तीसरे ने कहा

" ऐसा करो, थोड़ी देर बाद खाना लगा देना... ठीक है!"

" ठीक है बाबूजी...!" पायल चली गई तो दूसरे ने कहना शुरू किया-" मैं कह रहा था कि, दोनों बेटी बड़ी हो रही है । कल इसकी शादी बिहा हो जाएगी तो दोनों अपने अपने घर चली जाएंगी । बडा बेटा अभी बाहर पढ़ रहा है जाहिर है इंजीनियरिंग कर लेने के बाद वो भी घर में बैठा नहीं रहेगा । कहीं न कहीं जॉब लग ही जाएगी उसे । उस हालत में आप तो बिल्कुल अकेले हो जाएंगे । तब यह घर भांय भांय लगने लगेगी । भोजन पानी में भी परेशानी । आपकी शादी कर लेने में कोई बुराई नहीं है ..!"

" मैं इसकी बात से सहमत हूं । एक उम्र होती है । अभी सब कुछ आपके पक्ष में है। समय निकल जाने के बाद लोग बहुत तरह के सवाल उठाने लगते हैं ..!"

'" वैसे दुखना की मां को हुआ क्या था...?"

" बुढापा...! “ मैंने मुस्कराते हुए कहा ।

" हम कुछ समझे नहीं !" दोनों एक साथ बोल उठे थे ।

 मैंने कहना जारी रखा “  जब मैने उसे घर लाया था तो भरपूर जवान थी एकदम सिलसिल  बाछी ! और बहुत गुस्सेल भी । पर मैं उसे बहुत चाहता था । वो भी यहां आकर बेहद खुश थी । देखते देखते उसने मेरे घर में खुशियों की एक संसार बसा ली । परन्तु मन की बड़ी स्वाभिमानी थी ।बाहर देह पर हाथ तक रखने नहीं देती थी लेकिन घर आते ही पूर्ण समर्पित ! अपने बच्चों के प्रति उनका स्नेह और लगाव भी बेजोड़ था । हर हमेशा उन सबको अंकवारे चलती । पुचकारते-चाटते चुमते चलती । कभी अपनों से उन सबको अलग होने नहीं देती थी । लेकिन मुझे जरूरत के समय ही सटने देती-पकडने-छूने देती थी। एक बात और उसे आवारा कुत्तों से सख्त नफरत थी । कभी सामने आ जाते तो वो उस पर ऐसे झपटती मानो कूट कर रख देगी , बेटा -बेटी सब तो उसे मिल गया था । पर वह परिवार नियोजन के पक्ष में कभी नहीं रही । तभी वो दिन आ गए और दुखना के जन्म के बाद वह बीमार पड़ गई । हमने ब्लॉक लेबल के बड़े  डॉक्टर को बुलाए । वह आया भी । देखते ही कहा -" यह काफी कमजोर हो गई है ।" और उसने कुछ टेबलेट लिखे,दो सूई लगाई और तीन फाइल सीरप लिख कर बोले " इसे मंगा कर घंटा-घंटा के अंतराल में  तीनों फाइल सीरप पिला दीजिए....!" 

" एक ही दिन में तीन फाइल सीरप....?" दूसरे ने आश्चर्य व्यक्त किया तो मैंने कहा-" मेरा भी यही सवाल था ..!" तब डॉक्टर ने कहा-" इसके शरीर में हिमोग्लोबिन की घोर कमी हो गई है ।बच्चा होने के बाद और कमजोर हो गई है.!सीरप से शरीर में ब्लड कि मात्रा बढ़ जाएगी और यह धीरे धीरे रिकवर करने लगेगी ।""

" फिर क्या हुआ...?" तीसरे ने आंगन की और देखते हुए कहा ।

" दवा मंगा कर मैंने वही किया जो डॉक्टर ने कहा । सीरप पिला दी और मैं धनबाद चला गया । भाई को बोल रखा कि वो इस पर ध्यान रखे । मैं रात को लौट न सका । भाई रात नौ बजे फोन किया" दुखना की मां अब नहीं रही । " मैं रात को ही घर लौट आता पर । उस दिन सुबह से जो बारिश शुरू हुई वो रात भर बंद नहीं हुई। दोस्तों ने भारी बारिश में घर लौटने से मना कर दिया । मैंने भाई से कहा-" अब जो होना था वो तो हो गया । सुबह सब जुगाड कर रखना।  मैं समय पर पहुंच जाऊंगा...!" 

इसी बीच

बेटी पायल ने खाने के लिए फिर आवाज लगा दी । 

" अब चलो खा ही लेते है ...!" और तीनों  खाने बैठ गये ।

खाने के बाद मैंने दुखना को फिर आवाज दी -" दुखना अरे वो  दुखना ..." इस बार दुखना दौड़ा चला आया । 

" आपने पहले भी " दुखना " बोलके आवाज दी थी तब भी वह नहीं आया था !" तीसरे ने कहा-" इस बार भी नहीं आया ? उसकी जगह यह बछड़ा दौड़ा चला आया है ।  हम दुखना से मिलना चाहते हैं । उसको बुलाइए न ..!"

" यही तो हमारा दुखना है ! " और मैं दुखना के गले को सहलाने लगा !

" क्या...? यही वो दुखना है ? " दोनों मित्र एक साथ उछल पड़े थे ! 

" मतलब इस बछड़े का नाम दुखना है ?

" और जो आपने हमें कहानी सुनाई वो गाय इस दुखना की मां थी ? "

" अभी तक आप हमें इसी बछड़े की मां की कहानी सुना रहे थे " तीसरा का ताज्जूब भरा  स्वर फूटा ।

" हम तो समझ रहे थे आप हमें अपनी पत्नी के बारे में बता  रहे हैं ... गजब ! मैं अचंभित हूं ! आपके इस साइकोलॉजी देखकर ! फिर पायल की मां कहां है....?"

" पायल बेटे, मां को भेजो ...!' मैंने आवाज़ दी

" यह सब दुखना को दे दो ..कब से मेरा मुंह ताक रहा है ।" आने पर मैंने पत्नी से कहा ।

सभी बचा खुचा खाना एक गमले में दुखना के आगे डाल दिया गया । वह मजे से खाने लगा…!

“ जब एक जानवर के प्रति आपका इतना प्रेम है तो रति रविदास तो फिर भी आदमी है “ पहली बार एक दोस्त ने मुंह खोला था । वह अब भी दुखना को अजूबे प्राणी के रूप में देख रहा था ।

 ‘” मुझे तो यह एक अविस्मरणीय जानवर मालूम पड़ता है “ दूसरा बोला था।

“ मैं तो अभी भी आश्चर्यचकित हूं । एक जानवर  जिसे अपना नाम मालूम है और  पुकार सुनकर वह दौड़ा चला आता है प्रेम और स्नेह का अद्भुत कांबिनेशन !

“ जानवर मुंह से कुछ बोल नहीं सकता है पर प्रेम की परिभाषा वो समझता है। अपनी भाव-भंगिमाओं से वह अपनी खुशी और दुःख को व्यक्त कर देता है !”

इस बीच दुखना खाना समाप्त कर । मेरे पास आया और मेरा

हाथ चाटने लगा । उसका भाव बता रहा था और वह कहना  चाहता था कि आप न होते तो आज हम नहीं होते । तीनों दोस्त  जल्दी जल्दी अपने मोबाइल से हम दोनों का फोटो शूट करने लगे थे ।

श्यामल बिहारी महतो

बोकारो, झारखंड

फोन नं 6204131994








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