एक हुएं जैैैसे चांद-चकोरी -समीर उपाध्याय


गोपियां कृष्ण के विरह में व्याकुल हैं।
वसंतऋतु के आने पर
गोपियां कृष्ण जैसा स्वांग रचकर
कृष्ण के सान्निध्य को प्राप्त कर
सुकून पाना चाहती हैं।
इसलिए गोपियां कहती हैं- 

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं करूं अखियों में काजल सखी री।
मैं करूं होंठों पे लाली सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं पहनूं गूंजा की माला सखी री।
मैं पहनूं पीला अंबर सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं धरूं सिर पे मयूर-पंख सखी री।
मैं ओढूं हरियाली चुनरी सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं बजाऊं चंग-डफली सखी री।
मैं गाऊं फाग के गीत सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं उडाऊं अबीर-गुलाल सखी री।
मैं छिडकूं चंदन-केसर सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं जाऊं गायों को चराने सखी री।
मैं खेलूं ग्वाल-बाल संग सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं धरूं अधर पे मुरली सखी री।
मैं बजाऊं सात-सूर संगम सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं खोऊं सुध-बुध सखी री।
मैं रंगाऊं कान्ह के रंग में सखी री।

आ गई वसंत की शाही सवारी।
मैं बिसरूं खुद को पल में सखी री।
मैं बनूं कान्ह-प्रिय अष्टरानी सखी री।

मैं बनूं केशव की कालिंदी सखी री।
मैं बनूं जगदीश की जांबवती सखी री
मैं बनूं भुवराय की भद्रा सखी री।
मैं बनूं मुरलीधर की मित्रबिंदा सखी री।
मैं बनूं सांवरे की सत्यभामा सखी री। 
मैं बनूं श्याम की सत्या सखी री।
मैं बनूं रमण की रुक्मिणी सखी री।
मैं बनूं लक्ष्मीकांत की लक्ष्मणा सखी री।

किंतु राधा का प्रेम तो निश्चल और निस्वार्थ था।
उसमें कुछ पाने की लालसा ही नहीं थी।
उसमें तो सिर्फ देने की भावना थी।
उसमें तो था सिर्फ-समर्पण।
इसलिए सोलह हजार रानियां 
और आठ पटरानियां के होने के बावजूद
राधा बिना विवाह किए कृष्ण में समा गई।
कृष्ण में विलीन हो गई।

इसलिए वसंत के आने पर श्री कृष्ण बोल उठते है-
आ गई बसंत की शाही सवारी।
मैं कैसे भूलूं राधा संग प्यारी।
मैंने तो राधा संग सुध-बुध खोई
एक हुएं जैसे चांद-चकोरी।
एक हुएं जैसे चांद-चकोरी।
एक हुएं जैसे चांद-चकोरी।


समीर उपाध्याय
मनहर पार्क:96/A
चोटीला:363520
जिला:सुरेंद्रनगर
गुजरात
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