लघुकथा- चटनी


आज सुबह से ही घर में चहल पहल है ।रसोई से पकवानों की महक उठ रही है।  केवड़े की महक काजू पिस्ता काटे जाने की बातें खीर बन रही है, बूंदी का रायता ,तरह- तरह की सब्जियां पूड़ी -कचौड़ी और भी न जाने क्या-क्या। रामदयी को ईश्वर ने ख़ूब दिया।जब उन्हें पिता को दिया था तब भी और जब पति को दिया तब भी। सात -सात बेटे बहुए । भरा पूरा घर सब कुछ तो है।बस वह न रहा जो इस सब का निमित्त हुआ।
आज रामदयी के पति का श्राद्ध है पर उसे तो यह सब कुछ नहीं खाना न खाने का मन है न तन । डाॅक्टर ने भी मना किया है,जबान का स्वाद भी कहीं चला गया पिछले दो हफ्ते से बुखार में  है। तीन-चार दिन से कह रही है कि पुदीने की चटनी बना दो तो स्वाद थोड़ा ठीक हो जाए पर किसी को समय ही नहीं सब कामकाजी हो गए।पहले एक कमाता था और घर भर खाता था। अब घर भर कमाता है तब भी गुजर नहीं।वह सोचने लगी कैसे-कैसे सब बच्चों को अकेले दम पाला सब की ख्वाहिशें पूरी की सब कुछ किया और आज इस घर में उसके लिए पुदीने की चटनी नहीं बन सकती, मिक्सर खराब है ,सिलबट्टा ठीक से काम नहीं करता । न खरल रह गई न उनको रहने वाले।पुदीने की खट्टी-मीठी चटनी कितनी पसंद थी उसे।  याद कर उसके मुंह में पानी भर आया और वह सोचने लगी कि का़श !जिंदे व्यक्तियों का भी श्राद्ध हुआ करता तो  कम उसके श्राद्ध में तो पुदीने की चटनी बन ही जाती ... 

सुमन युगल


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