कविता-चलना होगा

   

चलना होगा तब तक
चलती है सांस जब तक।।

दिवस, पाख,मास 
चलते सूरज, चांद, सितारे
ऋतुएं चलती, मौसम चलता
चलते ग्रह–नक्षत्र सारे।।

अचला चलती, नदियां चलतीं
चलतीं सागर की लहरें,
नदियों के संग धारा चली,
नदी, नाले और नहरें।।

सुबह चलती,शाम चलती
चलतीं रातें सारी,
रातों में सपने चलते
सपनों के संग अनुरागी।।

सुख–दुख चलते रहते
धूप–छांव जैसे,
जब सारा जग चलता
न चलें हम कैसे?

रिश्ते नाते इस जग के
चलते रहते तब तक
जीवन चलता जब तक
मरण न होता तब तक।।


 महेन्द्र "अटकलपच्चू" ललितपुर(उ. प्र.)
 मो.  +918858899720
                            


         

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