रेखा की ग़ज़ल

 बहुत ही लम्‍बे समय के बाद आपके सामने एक रचना 

मौसम की तरह बदल रहा जमाने का मिजाज देखो

कागज के फूलों में से खुशबू आ रही है आज देखो।


कुर्बान जाती है निगाहें  हुस्न की जिन अदाओं पर

इबादत नहीं उन निगाहों में आजमा कर आप देखो।


पत्थरों से पिघलने की उम्मीद बेवजह करते हो यारो

मोम ने बदले हैं जो तुम पथरीले वो अंदाज देखो ।


आबादी वाली सड़कों पर बेचैन सी लाशें चलती है

तन्हां दिल में चलते अंधड़ तुम अंदर के हालात देखो


भूली बिसरी यादों के फूल छुपाए है हर दिल में कोई

कोई तड़प कर सो गया कोई रोया है सारी रात देखो।


रेखा दुबे, विदिशा 






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