हम सनातनी है,
सनातन की गाथा गाते हैं
दुश्मनी किसी से नहीं
विश्व एकत्व का भाव रखते हैं।
देव समझ हम
अतिथि स्वागत गीत गाते,
दुश्मनी जो करें ,
उसके छक्के छुड़ाते हैं।
प्रेम करता जो हमसे
उस पर आंच न आवें
उसके प्रहार पर
हम ढाल बन जाते हैं।
मुसीबत में हरदम मदद पहुंचाते
विश्व को सिख
सत्य ~ प्रेम का सिखाते हैं।
विभिन्न भाषा , पंथ, धर्म , रंग में भी
एकजुट हो विश्व को
एकता का पाठ पढ़ाते हैं।
पूजित है धरा हमारी
हम सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं
हम सनातनी है
सनातन की गाथा गाते हैं।
2. चलो मिलकर होली मनाते है
चलो पुरानी रंजीसे भूल जाते हैं
धुन प्यार का गुनगुनाते हैं
और कोई न बच पाए इस होली में
चलो मिलकर होली मानते हैं ।
जात धर्म मजहब को एक बनाते है
हिन्दू-मुस्लिम सिख सब एक हो जाते है
द्वेष-भावना सारे अपने मिटाते हैं
चलो मिलकर होली मानते हैं।
घृणा , अहंकार, पाप, क्षोभ, ईष्या
लोभ और 'मैं' को जलाते हैं
आज मिलकर गले, खुशियां मनाते हैं
चलो मिलकर होली मानते हैं।
करके पानी की बचत
सूखे अबीर गुलाल लगाते हैं
जो नहीं खेले अब तक होली
उनको भी आज सराबोर कर जाते हैं
चलो मिलकर होली मानते हैं।
धरती रंगीन और अम्बर को रंग जाते हैं
इस होली में पानी को उपहार दे जाते हैं
भेद- भाव की भावना को दूर भागते हैं
चलो मिलकर होली मानते हैं।
संतोष कुमार वर्मा ' कविराज '
कोलकाता, पश्चिम बंगाल
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