मेरी यादगार यात्रा- पूनम झा


बात बहुत पुरानी नहीं है। अभी गत वर्ष ही 2016 के 04 दिसम्बर को मैं अमृत सम्मान के लिए आमंत्रित थी। समारोह भोपाल में था। हमने 03 दिसंबर का जयपुर सिकंदराबाद एक्सप्रेश में रिजर्वेशन करा लिया। 03दिसंबर की रात को हम ( मैं और मेरे पति ) उस ट्रेन से रवाना हो गए । सुबह साढ़े पांच बजे गाड़ी जब उज्जैन पहुंची तो वहाँ दो सभ्य बजुर्ग पुरुष चढ़े । उनका सीट हमारे सामने वाली थी। चहल पहल से मेरी नींद खुल गई थी। मैंने देखा एक व्यक्ति दोनों सीट पर करीने से चादर बिछाये तकिया कंबल सब लगा दिया। दूसरे व्यक्ति को कुछ करने नहीं दे रहे थे। फिर दोनों अपनी सीट पर सो गए। एक व्यक्ति थोड़ा कराह रहे थे कि तुरंत दूसरे व्यक्ति उठकर पूछे क्या हो रहा है ? वो पैर की तरफ इशारा किए तो झट उनका पैर दबाने लगे ।.......दोनों एक दुसरे का बहुत सम्मान कर रहे थे | मैं समझ गई, ये दोनों भाई हैं ।

फिर करीब आठ बजे मैं उठकर बैठ गई । हमारी गाड़ी डेढ़ घंटे की देरी से चल रही थी। वो लोग भी उठ गए थे । बातों से पता चला कि वो राजस्थान के रहने वाले हैं । लेकिन अब हैदराबाद में बस गए हैं । वहाँ उनका बिजनेस है। उन्होंने कहा कि वे दोनों बचपन के दोस्त हैं । मैं आश्चर्य से देखती रह गई | मैंने कहा कि आपका प्रेम देखकर तो दोस्त नहीं भाई लग रहे हैं । वे बहुत खुश हुए । उज्जैन में उनके मित्र के बेटे की शादी में आये थे। बातों ही बातों में उन्हें भी ये मालूम हो गया कि मैं कविता गजल वगैरह लिखती हूँ। फिर वो बहुत खुश हुए और कहने लगे कि वे लोग कवि सम्मेलन के बहुत शौकीन हैं। वे दोनों गजल मुक्तक सुनाने लगे और मुझे भी सुनाने की जिद करने लगे । कई गजल उन लोगों ने सुनाई और मैंने भी सुनायी । हमारी गाड़ी साढ़े नौ के बजाय 11बजे पहुँची ।पर समय कैसे निकल गया मालूम ही नहीं हुआ।
इस सफर में दोनों व्यक्तियों की दोस्ती में आपसी प्रेम देखकर बहुत आनंद का अनुभव हुआ ।

--पूनम झा
कोटा राजस्थान

Mob-Wats - 9414875654


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