प्रतिभा की ग़़ज़ल

 ठंड में ठिठुरे हमारे गात हैं ।

बैठकर हम भी बिताते रात हैं।।


अब कभी सोते कभी तो जागते

हम दिवानों की अलग ही बात है।


है अमीरी औ' गरीबी सब जगह

पर गरीबी तो यहाँ आघात है ।


बेसहारा कर दिया मुझको जहां

बस गरीबों की यही औकात है।


खून की होली अभी खेले यहाँ

नौजवानों की यही सौगात है।


 गुनगुनाएँ आज उनकी याद में

भारती के लाल की जज़्बात है।


देश की रक्षा हमारा फर्ज जब

राष्ट्र धुन की चल पड़ी बारात है।


डॉ प्रतिभा कु०पराशर    हाजीपुर बिहार




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