सृष्टि की सुंदर रचना हूँ ,
कोई प्रवंचना नहीं नारी हूँ ।
लक्ष्मी-दुर्गा सज्जनों के लिए,
दुष्टों हेतु दहकती चिंगारी हूँ ।
सुंदर, कोमल काया की धनी,
सद्गुणों के मिश्रण से हूँ बनी ।
चूड़ी और पायल की खनक,
है व्यक्तित्व में एक चमक ।
मैं कोई दया की पात्र नहीं,
सजावटी वस्तु मात्र नहीं।
अटल हौसलों से भरी हूँ ,
आगे बढ़ने से कब डरी हूँ?
मेरे जन्म पर जो होते दुखी,
ऐसे कबुद्धि वालों को क्या कहूँ?
अपने अंश को जो वंश न समझे,
उसको भी मैं अपना ही समझूँ।
आँचल-सी कभी लहराती हूँ,
फूलों-सी मैं मुस्कुराती हूँ ।
अपनी वाणी के जादू से ,
मुश्किलों में धीरज बँधाती हूँ ।
भावनाओं में बह जाती हूँ,
पर सीमा में ही रहती हूँ ।
ज़िंदगी की धूप-छांव में ,
अपना हर फ़र्ज़ निभाती हूँ ।
बाहर से हूँ कोमल भले,
पर आँधियों से टकराती हूँ ।
चार-दिवारी में क़ैद बेचारी नहीं,
मैं उड़ने की अधिकारी हूँ ।
जीवन के आदर्शों पर चलकर,
काँटों में राह बनाती हूँ ।
- सीमा रानी मिश्रा
हिसार, हरियाणा
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