कलम-सतीश "बब्बा"

कितनी कलमें घिस डाला,

मैं भी घिसकर हो गया बूढ़ा,
परिवार से हो गया अलहदा,
मिला नहीं है अब - तक धेला!

ऐसी हम साहित्यकार की हालत,
कहते हैं सब, हमको पागल,
समाज के अंदर रहकर भी,
समाज से हैं, कितने बाहर!

सबसे ज्यादा जिसको जाने,
वह हंसता दिन भर हम पर,
कलम नहीं है चुकने पाई,
कागज भी हंसता है हम पर!

प्रेम के काविल रहे नहीं हम,
प्रेम की बातें ज्यादा करते हम,
प्रेम को पहचाना भी है हम,
प्रेम के भूखे रह गए हम!

अब तो कलम बची है संगी,
आस लगाकर बैठे हैं हम,
इंद्रियाँ सभी जवाब दे रही,
फिर भी लिखने बैठे हैं हम!!
                                
सतीश "बब्बा"
ग्राम + पोस्टाफिस = कोबरा, जिला - चित्रकूट,
 उत्तर - प्रदेश, पिनकोड - 210208.
मोबाइल - 94510485089369255051.
ई मेल - babbasateesh@gmail.com



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