बसंत ऋतु
फिर से आया माघ महीना,
फिर आया ऋतुराज बसंत।
गंध बिखेरें उपवन उपवन,
रंग बिरंगे पुष्प अनंत।
फूल रही है पीली सरसों,
झूम रही है डाली डाली।
झूम रहे रस पीकर भंवरे,
कूक रही है कोयल काली।
रंग बिरंगी तितली घूमें,
फूल खिलें हैं क्यारी क्यारी।
हरियाली अपने यौवन पर,
हर बगिया लगती है प्यारी।
-- विनय बंसल
310, पुष्पाञ्जलि अपार्टमेंट
केशव कुञ्ज
प्रताप नगर
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