ग़ज़ल* ( 221 1222 221 1222 )
फितरत ही हमारी है , अपनों से दगा करना।
है खूब हुनर हममें , हर वक़्त खता करना।।
इक उम्र गवां कर हम , इतना ही समझ पाए।
है ग़म का सबब यारों , उम्मीद-ए-वफ़ा करना।।
है हाल बहुत बदतर , हर सांस में मरते हैं।
आ जाए मौत हमें , मेरे हक में दुआ करना।।
दिल की कच्ची है वो , रोने लग जाएगी।
मिलना जो उसे मेरा , मत हाल बयाँ करना।।
मेरे हिस्से की खुशियों से , दामन उसका भर दे।
ऐ मेरे खुदा उसके , ग़म मुझको अता करना।।
ईमान है वो दिल का , है जान वही मेरी।
रब तुमसे गुज़ारिश है , मुझे उसपे फ़ना करना।।
माना तुम्हें जीने की , कोई चाह नहीं फिर भी।
तुम जी कर 'रघुवंशी' , बस फर्ज अदा करना।।
~ राघवेंद्र सिंह 'रघुवंशी'
पत्योरा हमीरपुर उत्तर प्रदेश
Mob - 6387961897
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