होली प्रियतम से दूर
लिफाफे में खत नहीं रक्खा ख्याल भेज रहे हैं
समेटकर पन्ने में तुम्हें गुलाल भेज रहे हैं
कुछ रंग तुम्हारे हिस्से का भेज रहे हैं चुनकर के
छाप हथेलीं की भेज रहे हैं हम फागें सुनकर के
कंचे कौड़ियों संग हुरियारे की ताल भेज रहे हैं
लिफाफे में खत नहीं रक्खा ख्याल भेज रहे हैं
ज्वारे कुछ कुछ सरसों कुछ गेहूं की फलियां
कुछ पलाश के फूलों की रंग बिरंगी सी लड़ियाँ
बांध मिठाई सजा के धागों से रूमाल भेज रहे हैं
लिफाफे में खत नहीं रक्खा ख्याल भेज रहे हैं
कोई रंग यहाँ रंगीन नहीं होली प्रियतम से दूर है
बस तेरे नाम का रंग चढ़ा है तू आंखों का नूर है
अपनी एक तस्वीर साथ में एक सवाल भेज रहे हैं
लिफाफे में खत नहीं रक्खा ख्याल भेज रहे हैं
- नवीन कुमार जैन
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