नारी मानवता की पहचान ,
भरती है सबके अन्दर जान ।
होती सभी गुणों की खान ,
करें सभी उसका सम्मान ।।
घर की इज्जत होती नारी ,
करती स्वीकार जिम्मेदारी ।
दिल दया-करुणा का सागर ,
भरें उसमे सब अपनी गागर ।।
परीश्रम की होती प्रतिमूर्ति ,
तन-मन मे विद्धुत सी फूर्ति ।
कुछ इसे समझते हैं अवला ,
पर होती यह सच मे सवला ।।
करें न कभी इसका उत्पीड़न ,
होता इससे कुण्ठित है मन ।
भूल से भी हल्का न आँकें ,
बुरी नजर से कभी न झाँकें ।।
करती है दो वंशों का हित ,
बढ़ती जिससे सबकी इज्जत ।
महिला पर करें न अत्याचार ,
समझें न कभी उसको भार ।।
शिक्षा के मार्ग पर इसे बढ़ायें ,
उन्नति के हर शिखर चढ़ायें ।
अंकुश व्यर्थ के कभी न लगायें ,
कु प्रथाओं से समाज जगायें ।।
नारी जब पढ़ - लिख जायेगी ,
समाज मे खुशहाली आयेगी ।
बच्चे होंगे शिक्षित-संस्कारित ,
समाहित जिसमें सबका हित ।।
संकल्प लें आज सब मिलकर ,
मिले सम्मान नारी को हर घर ।
समाज की यह होती रीढ़ ,
अब दूर करेंगे उसकी पीड़ ।।
- डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
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