होली पर राजेश के कुंडलियां छंद


होली तो तब ही लगे, पिया लगाये रंग ।
फागुन में प्यारा लगे, उसे पिया का संग ।
उसे पिया का संग, झूमकर वो इतराए ।
मिले अबीर-गुलाल, धरा आंगन महकाए  ।
खिलता फागुन मास, खिले आंगन रंगोली ।
रहना नहीं उदास, प्रेम से खेलो होली ।
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आया फागुन खेलता, रंग, अबीर, गुलाल ।
लाल गुलाबी हो गए, गोरे-गोरे गाल ।
गोरे - गोरे गाल, खेत में फूली सरसों ।
चढ़े प्रेम का रंग, रखे पगलाये बरसों ।
हरा, गुलाबी, लाल, बसंती कोई लाया ।
भाया वो ही रंग, सनम जो लेकर आया ।
                  ***
अमराई की छांव है, फागुनी है बहार ।
चंग बज रही हर गली, आजा कर लूं प्यार ।
आ जा कर लूं प्यार, किसलिए तू शर्माये ।
छोटा, बड़ा, जवान, रंग ले दौड़ लगाये ।
कलियां घूंघट खोल, देख भौंरा मुस्काई ।
टेसू फूला बाग, खूब महकी अमराई ।
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        कवि राजेश कुमार भटनागर,
            संस्थापक - अध्यक्ष,
        मां शकुंतला साहित्य मंच


 

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