झूले सा नारी का जीवन, इस पार कभी उस पार कभी।
गैरों से मिलता प्यार कभी, पर अपनों की दुत्कार कभी।
जो उसे खिलौना समझ रहे, अपनी आँखें खोलें, देखें,
वह कभी शक्ति का रूप धरे, जा रही गगन के पार कभी।
वह कोमलांगी कहलाती, पर कभी वज्र बन जाती है,
ममता की मूर्ति कभी दिखती, वह ले लेती तलवार कभी।
बन जाती कभी सयानी वह, हो जाती कभी दिवानी वह,
तन-मन-धन लेती छीन कभी, तन-मन-धन देती वार कभी।
उसका अदम्य साहस देखो, युद्धक विमान लेकर नभ से,
कर भारत की जयकार कभी, दे दुश्मन को ललकार कभी।
जब आन-बान पर आ जाती, रणचण्डी वह बन जाती है,
वह कभी शत्रु को क्षमा करे, कर देती है संहार कभी।
नारी तो कुल की मर्यादा, नारी पूजित नारी पावन,
वह युग-कुल गौरव बने कभी, जग में होती जयकार कभी।
ओम जी मिश्र 'अभिनव'
लखनऊ उत्तर प्रदेश
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