मां-अर्चना त्यागी


जब भी थकती हूं,
तुम्हे ढूंढती हूं मां।
जब भी हारती हूं,
तुम्हे पुकारती हूं मां।
तुम अब आती नहीं,
तुम्हारी याद आती है।
तुम अब बुलाती नहीं,
तुम्हारी आवाज़ आती है।
खोई थी दुनियादारी में,
पर तुम खास थी मां।
न पहचान सकी तुम्हारी कीमत,
जब तुम पास थी मां।
घूमती फिरती हूं, ढूंढ़ती फिरती हूं
तुम कहीं  दिख जाओ,मिल जाओ मां।
हैरान होती हूं, परेशान होती हूं
क्यूं रूठ गई हो?
मान जाओ मां।
कुछ तो मुझे बताओ मां
एक बार सामने आओ मां।
फटकार भी लगाओ मां
लोरी भी सुनाओ मां।
तुम्हे ढूंढती हूं मां
तुम्हे पुकारती हूं मां
कुछ और नहीं तो
सपने में ही आओ मां
मान भी जाओ ना।
मौलिक एवं स्वरचित।
अर्चना त्यागी
जोधपुर
राजस्थान 


 

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