पावन सरिता माॅं गंगा
सूरज उदित हुआ, गंगा की लहरें गीत गाने लगी
प्रकृति की शांत बयार उनके संग गुनगुनाने लगी।
जन जन की आस्था है, पावन सलिला गंगा माता।
गंगोत्री से चलती है, कल कल छल छल बहती है।
प्रभु के चरण कमलों से निकली मैया मेरी पावन है
श्रद्धा और आस्था से अवतरित इसका दामन है।
धरा पर बहने लगी, सर्व कल्याण करती रहती है
गंगोत्री से चलती है, कल कल छल छल बहती है।
वेद पुराणों ने महिमा गाकर देवी इसको माना है
भागीरथी और अलकनंदा के संगम को जाना है।
धर्म पालन कर अपना सागर को समर्पित रहती है
गंगोत्री से चलती है, कल कल छल छल बहती है।
तीनों लोकों का उद्धार है, यह अलौकिक उपहार है
ऋषि मुनियों का संसार है, मुक्ति का भव्य द्वार है।
मन, बुद्धि, शरीर को निर्मल जल से शुद्ध करती है
गंगोत्री से चलती है, कल कल छल छल बहती है।
पदमा गोविंद मोटवानी
गांधीधाम (कच्छ) गुजरात
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