डॉ.अनीता की कविता मुकुटमणि है पिता

 मां शकुंतला कला एवं साहित्य परिषद 16 जून 2024 पितृ दिवस पर मेरी रचना
शीर्षक_ "मुकुटमणि है पिता"
विद्या _कविता
दिनांक  16 .6 .2024

परिवार के मुकुटमणि चमके बनकर हीरकणी ।
भाल तिलक का तेज महान करते चरणों में वंदना।
 दीपक बनकर जले सदा तुम डरे नहीं अंधियारों से।
बढ़े सदा मुस्कान लिए तुम नभ के चांद सितारों से।
 नई चेतना पाई तुमसे तुम ही हो उजियारे।
कैसे उऋण बन पाऊं अनगिनत उपकार तेरे।
 नई दिशा दी पापा तुमने आया नया सवेरा।
 पाकर तुमसे दिव्य उजाला भागा दूर अंधेरा।
 ज्योतिपुंज!तेरी ज्योति से आलोकित संसार।
 नए सृजन के हस्ताक्षर किए सदा तुमने अविरल।
 तेरे अगणित गुण है उनका क्या वर्णन कर पाऊं?
 एक जीभ से बोलो कैसे इतने गुण मैं गाऊं?
तुमसे पाकर संबल पिता पाऊं मैं अपनी मंजिल।
 तेरे श्रम से सिंचन पा महका घर उपवन सारा।
तेरे अगणित अवदानों से उपकृत है जग सारा।
अमिट बना कृतत्व तुम्हारा नभ में जो ध्रुव तारा।
 पाकर नंदन वन सा संबल चमका भाग्य सितारा।
 तेरे प्रबल पराक्रम से ही खुले प्रगति के द्वार।
प्रतिपल सिंचन पाकर तुमसे घर आंगन गुलजार।
 पिता तेरे पद चिन्हों पर न्यौछावर संसार।

डॉ.अनीता सकलेचा (स्वर्ण पदक विजेता )
हिंदी व्याख्याता सोफिया कॉलेज अजमेर।


 

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