रंजना माथुर की लघुकथा ख़ामियाज़ा

उन्हें अपने ओहदे व दौलत का नशा था या अपनी प्रसिद्धि का गुरूर। साथी डॉक्टर्स हमेशा इंसानियत की दुहाई देकर उन्हें समझाते और कहते - "यार हमारा प्रोफेशन मानवता की सेवा भावना से जुड़ा है। थोड़ा उसका भी ध्यान रखो। हमें हृदय में दया भाव रखना चाहिए मित्र " मगर वे हमेशा अपनी स्पेशियलिटी के घमंड में फूले-फूले घूमते थे। आप्रेशन के लिए नियत समय से अति विलंब से पहुंचना वे अपनी खासियत मानते और समय पर पहुंचना अपनी तौहीन समझते। उनके इस बर्ताव से अनेक बार कई मरीजों को ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ता था। पब्लिक में रोष था परन्तु बीमार तो हमेशा बेबस होता है।
आज भी वही पुनरावृत्ति हुई। हाईवे से आ रहे कुछ युवकों में से एक की अनियंत्रित बाइक सामने आ रहे ट्रोले से जा भिड़ी। ज्ञात हुआ युवक नशे में था। 20 फीट दूर जा उछला। बाइक चकनाचूर व ट्रोला चालक फरार। युवक मरणासन्न अवस्था में भारत हास्पिटल में लाया गया ।
युवक के साथी दूसरे स्टेट के थे। दोस्त के परिवार या अन्य किसी से पहचान न थी। स्टाफ द्वारा डॉ अभय को स्पेशल काॅल कर तुरंत आने की रिक्वेस्ट की गई। डॉ का असिस्टेंट भी नया था। उसी ने अटेंड किया। पेशेंट की हालत अति गंभीर थी। काफी ब्लड बह चुका था। बार-बार आग्रह के बाद भी आदत से मजबूर 40 मिनट विलम्ब से डाॅ अभय आप्रेशन थियेटर में पहुंचे मगर तब तक देर हो चुकी थी। युवक के प्राणपखेरू उड़ चुके थे। डॉ अभय ने मृतक की चादर हटा कर देखा तो होश उड़ गये। वह और कोई नहीं उनका अपना लाड़ला बेटा अभिनव था जो कल अपने बाहर से आए दोस्तों के साथ नाइट आउट पर गया था। आज का खामियाजा खुद डॉ अभय के नाम था ।

रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
 94615 94804



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