सुनील कुमार की लघुकथा भूल का एहसास

अजय अभी बाजार से घर वापस आया ही था कि घर के बाहर कबाड़ी को तराजू में अपनी किताबें तोलता देख उस पर भड़क उठा और गुस्से से बोला  क्या कर रहे हो तुम ? कबाड़ी बोला साहब रद्दी तौल रहा हूं। उसके इतना कहते ही अजय आग बबूला हो गया। इतने में अजय की पत्नी शोभना बोली इसे क्यों डांट रहे हो ? कमरे की सारी अलमारियां रद्दी किताबों से भरी पड़ी हैं, सामान रखने के लिए जरा सी भी जगह नही है। मैंने ही इसे ये रद्दी किताबें दी हैं। शोभना के इतना कहते ही अजय उस पर भड़क उठा। क्या बोली तुम,मेरी किताबें तुम्हें रद्दी दिखती हैं।तुम्हें रद्दी लगने वाली ये किताबें मेरी जिंदगी हैं।मेरी ये किताबें ही मेरी सच्ची दोस्त हैं।बचपन से लेकर आज तक इन्हीं किताबों ने मुझे भले-बुरे और सही-गलत का फर्क सिखाया है। मुझे सही रास्ता दिखाया है और तुम इन्हें रद्दी कह रही हो।आज मैं जो कुछ भी हूं इन्हीं किताबों की वजह से हूं। इन किताबों से मुझे उतना ही लगाव है जितना कि तुमसे।भगवान के लिए इन्हें कभी मुझसे दूर करने की बात भी मत सोचना।यह कहते-कहते अजय भावुक हो गया और कबाड़ी के तराजू से अपनी किताबें उतार उन्हें सीने से लगाए घर के अंदर चला गया।किताबों के प्रति अजय का  लगाव देख शोभना की आंखें नम हो गई। शायद उसे अपनी भूल का एहसास हो गया था।

रचनाकार- सुनील कुमार
पता- ग्राम फुटहा कुआं
निकट पुलिस लाइन
जिला-बहराइच,उत्तर प्रदेश।
मोबाइल नंबर-6388172360
ईमेल kumarsunil81f@gmail.com


 

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