मातृत्व
अनहद नाद में गूंज
गूंजती है शिराओं में
जब गूंजता है
मातृत्व का
बोध
कई विलक्षण
अनुभव में गिरता
फिसलता मन
कभी विस्मित
भ्रमित कभी आह्लादित सा
भीतर युवती के
जन्म लेता विराट मातृत्व
नये रूप में ख़ुद को पाती है
शनैः शनैः
ख़ुद के भीतर जन्म लेता है
ब्रह्माण्ड
एक नये जीव के रूप में
जुड़ जाती है
उसकी साँसे नन्हे अबोध से
यूँ ही गुज़र जाते है नौ महीने
उसकी करवटों
हलचलों से धड़कता है
ह्रदय
सींचती है अपने रक्त से
और फिर होता है
मौत के भीतर से एक जन्म
रुदन प्रक्रिया से
हाँ एक बार फिर
लेती है जन्म माँ के रूप में
प्रसव पीड़ा
हो जाती है धूमिल
गोद में पा
नन्हा अस्तित्व
चिपटा लेती है वक्ष से
माँ बनना आसान कहाँ था
मौत से जूझ कर
सावित्री शर्मा “सवि “
सावित्री शर्मा” सवि “
देहरादून
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