“चिराग! चिराग! अपनी माँ को छोड़ कर तू कहाँ चला गया बेटा?” स्थानीय मेडिकल कॉलेज के युवा प्रोफ़ेसर चिराग की एक भीषण सड़क दुर्घटना में मृत्यु के उपरांत उसकी माँ उसके मृत शरीर पर पछाड़ें मार-मार करुण क्रंदन कर रही थी।
बेटे का नाम बुदबुदाते हुए वह न जाने कितनी बार अचेत हुई।
तभी चिराग के बड़े भाई ने तनिक संयत होते हुए भाई के मेडिकल कॉलेज को जल्दी से देहदान के लिए उसका शरीर ले जाने के लिए कहा।
बेटे की कॉलेज वालों से बातचीत सुनकर माँ पर जैसे वज्रपात हुआ। वह सिसकते हुए बेटे को अपने आँचल से ढाँप चीख उठी,“क्या! देहदान? नहीं! नहीं! मेरे लाल को यहाँ से कोई नहीं ले जाएगा! उसके शरीर पर चीर-फ़ाड़ करेंगे सब। बहुत बेक़दरी होगी उसकी।”
“माँ! उसका शरीर तो अब मिट्टी है। चिराग का मृत शरीर चिकित्सा जगत के लिए बेशकीमती होगा, क्योंकि यह मात्र चिकित्सा शिक्षा ही नहीं, वरन रिसर्च के काम भी आ सकता है। कई बार दिग्गज सर्जन मृत शरीर पर प्रैक्टिकल कर जटिल से जटिल शारीरिक समस्या का निदान ऑपरेशन द्वारा करने का अभ्यास करते हैं। सोचो माँ, इससे हज़ारों लोगों की जिन्दगीयॉं बच जाती हैं। तो यह पुण्य का काम हुआ या नहीं?”
“पर बेटा! बिना क्रिया-कर्म के उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।”
“अरे माँ! अपने यहाँ भी तो महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियाँ दान में दी थीं। अगर देहदान धर्म विरुद्ध होता तो क्या महर्षि दधीचि यह करते? माँ! अनगिनत ज़िंदगियाँ बचाने से और पुण्य का काम क्या होगा? इस से तो सच्चे मायनों में उसकी आत्मा को शांति मिलेगी। अब आप ही बताओ, इस नेक काम से चिराग की मिट्टी सोना बन जायेगी या नहीं?”
रेणु गुप्ता
90245 79762
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