चाय चीन और चतुराई -अशोक वाधवानी

 

 आलोक की आदत है, अख़बार पढ़ते हुए सुबह की पहली चाय पीना। अख़बार गिरने की खनक सुन, दरवाज़ा खोल कर उसे उठाया। गरमा – गरम चाय की चुस्कियों के साथ, वो दैनिक में देश-दुनिया की ख़बरें पढ़ने में तल्लीन हो गया। चाय का आखिरी घूंट समाप्त करते ही, दरवाज़े की घंटी बज उठी। आलोक ने दरवाज़ा खोला। सामने कुंवारा पडौसी चतुर मल खड़ा था। दरअसल, उसका नाम कुछ और ही है। हर बार नये-नये तरीके अपना कर कुछ न कुछ मांगता हैं। इसके अलावा दिन रात चीन देश की चालाकी, चतुराई की चर्चा ( चमचागिरी ) करने से बाज़ नहीं आता है। इसलिए आलोक ने उसे चतुर मल नाम दिया है। रोज़ाना उसकी अख़बार मांगने की आदत से परीचित आलोक ने अनमने से अख़बार उठाकर उसे दे दिया। चतुर मल ने मुस्कुराते हुए उसे लौटा दिया। विकसीत पड़ोसी देश द्वारा, विकासशील देश को दी गयी आर्थिक मदद सहर्ष ठुकराने जैसा झटका था, आलोक के लिए। 
             `  ब्रश करके, चाय बनाने के लिए गैस का स्टोव जलाया तो गैस की टंकी ख़ाली मिली। अतिरिक्त टंकी नहीं है। सोचा, तुम्हीं से टंकी उधार ले लूं। ´ सोफे पर पसरते हुए चतुर मल ने आने का असली मकसद बताया। चतुर की तरह आलोक भी कुंवारा है और अकेला रहता है । उसने सोचा, ` अगर गैस टंकी चतुर मल ने बहाना बनाकर, समय पर नहीं लौटाई तो मेरा बंटाधार हो जाएगा। इससे तो अच्छा है, एक कप चाय पिलाकर ही टरका दूं। ´ ´ चाय बनाने के लिए पूरा सिलेंडर ले जाने की क्या ज़रूरत है ? मैं चाय बना कर पिलाता हूं। ´ आलोक ने चतुर मल से कहा और प्रतिक्रिया जाने बिना, चाय बनाने के लिए किचन की ओर बढ़ा। चतुर मल ने पढ़ने के लिए समाचार पत्र उठा लिया। 
           चाय बनाते हुए आलोक के दिमाग़ में तेजी से विचार चक्र दौड़ने लगे, चतुर मल को सबक सिखाने के लिए। क्योंकि कुछ दिन पहले चीन की उन्नति, प्रगति, कायदे-कानून की जमकर प्रशंसा करने के बाद, उसने कहा था, ` चीन ने कोरोना वायरस को अपने शहर वुहान शहर से बाहर अपने ही देश के किसी और हिस्से में फैलने नहीं दिया था । यह उसकी बहुत बड़ी कामयाबी थी । चीन में अब तो सब कुछ सामान्य हो गया है। कोई और देश होता तो इस वायरस से लड़ने की बजाय घुटने टेक देता ………। ´ आलोक ने तैश में कहा था, `  चीन ने अपना देश तो बचा लिया, लेकिन सारे संसार को तबाह, बर्बाद करके रख दिया है। उसका कोई सही जवाब है तुम्हारे पास ? चतुर मल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। कोई उत्तर नहीं सूझा था। उस समय आलोक का ख़ून ख़ौल उठा था। लोगों ने बीच-बचाव करके दोनों को शांत किया था। चतुर चीन की तारीफ़ करने के चक्कर में,  जाने-अनजाने भारत देश को मामूली, महत्वहीन करार देता हैं। आलोक ने तभी संकल्प ले लिया था कि मौका मिलते ही चतुर मल को उसके ही दांव-पेचों से चारों खाने चित्त कर दूंगा। आज वो सुनहरा अवसर आया है। आलोक को एक युक्ति सूझी। 
            आलोक ने चाय बनाकर,  कप चतुर मल के हवाले कर दिया। चाय का पहला घूंट हलक के हवाले करते ही चतुर चिल्लाया, `  यह क्या बेहूदा मज़ाक है ? ये कौन सा तरीका है चाय पिलाने का ? चाय में भला कोई शक्कर की जगह नमक मिलाता है क्या ? आलोक ने शांत होकर जवाब दिया, ` तुमने ही तो बताया था कि चीन के कुछ हिस्सों में लोग चाय में चीनी के बदले नमक डालकर पीते हैं। तुम चीन के चहेते हो। सोचा, नमक मिश्रित चाय भी ख़ुशी-ख़ुशी पी लोगे। ´ चतुर मल को काटो तो ख़ून न निकले। उसने मन ही मन में निश्चय किया, भविष्य में आलोक से ना कुछ मांगूगा और ना ही उसके सामने चीन का जिक्र ही करूंगा। ´ उसके कदम चल पड़े अपने घर की ओर। 

अशोक वाधवाणी 
गांधी नगर , कोल्हापुर , महाराष्ट्र , संपर्क :9421216288 , ई मेल 
ashok.wadhwani57@gmail.com

 


 

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