कमकुम की कविताएं

 

पितृ दिवस पर आज सभी, करते पितृ को याद।
पाकर आशीष पितृ से,होते खुश औलाद।।

मात-पिता के स्थान का,करता जो नित ध्यान।
बिन पोथी के ज्ञान ही,मिलता उसे सम्मान।।

रहता जिसके सिर सदा,मात-पिता का हाथ।
होता उस औलाद का, हरपल जग में गाथ।।

पिता से ही रौशन है, बच्चों का संसार।
उनके ही संभार से, पाता वो आकार।।

बाबा बच्चों के लिए, होते अग्नि समान।
रक्षक बन रहते सदा,ताने तीर कमान।।

वंश की रक्षा के लिए, करते हैं हर काम।
कैसे सुत आगे बढे,सोचते सुबह शाम।।

बच्चों की सुख के लिए,तात हैं परेशान।
बच्चों को भी चाहिए,रखना उनका ध्यान।।

होते है माता-पिता, धरती के भगवान।
काव्या कहती है सदा,रखना उनका मान।।

         कुमकुम कुमारी "काव्याकृति"

 मेरा गॉंव

आइए मेरे गाँव में,
अजी बैठिए छांव में,
प्रकृति के नजारे को,
समीप से देखिए।
                    समृद्ध खलिहान है,
                    मेहनती किसान हैं,
                    ताजे-ताजे उपज का,
                    आंनद तो लीजिए।
कोलाहल से दूर है,
सुकून भरपूर है,
शीतल ठंडी हवा का,
सेवन तो कीजिए।
                    सबसे अच्छी बात है,
                    दादी नानी का साथ है,
                    मीठे ताल-तलैया का,
                    अजी जल पीजिए।।

लोग यहाँ के अच्छे हैं,
दिल के बड़े सच्चे हैं,
झूठ और फरेब से,
होते कोसों दूर हैं।
                    सुबह उठ जाते हैं,
                    भ्रमण कर आते हैं,
                    अंखियों में इनके तो,
                    नूर भरपूर है।
सबको आशियाना है,
नहीं कोई बेगाना है,
अपने ही आमोद में,
रहते ये चूर हैं।
                    सादगी इन्हें भाता है,
                    दिखावा नहीं आता है,
                    अपनी धरती माँ पे,
                    करते गुरुर हैं।।

       कुमकुम कुमारी "काव्याकृति


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