1. जल बिना सब सून (पर्यावरण गीत)
कोई जात धरम न सोहे,
न मंदिर मक्का मदीना-
जल के बिना सब सूना रे प्राणी ।
प्रकृति का दोहन हम करते रहते दिन-रात ।
सोचो प्रकृति से अपनी कैसे बनेगी बात ?
जब प्रचंड वो रूप दिखाती...
मुश्किल होता जीना -
जल के बिना ...........
धरती का सीना चीर लहू को बूंद-बूंद बहाया ।
सारा शृंगार उजाड़े हमने इसको नंगा बनाया ।
इसीलिए तो लगे जेठ-सा ....
सावन का महीना -
जल के बिना ...........
खूब रूलए हैं कुदरत को हमने स्वार्थ में आकर ।
जीती बाजी हार गये हैं हमने सब कुछ पाकर ।
कदम-कदम मुँह की खाते ....
फिर भी तानें हम सीना –
जल के बिना ...........
अब भी चेतो वक़्त बहुत है, जागो और जगाओ ।
सोख्ता गड्ढा से जल स्तर, पेड़ से मौसम लाओ ।
घर-घर में सोख्ता गड्ढा हो ....
लगे दो-दो पेड़ रोजाना -
जल के बिना ...........
अजीत कुमार
2. जल बचाओ कल बचेगा
जल बचाओ कल बचेगा वक्त की आवाज है,
बूंद-बूंद हमने बचाना कर दिया आग़ाज़ है।
जल नहीं तो कल नहीं है क्यों ये भूले जाते हो।
तुम तो खुद जज्बात के दरिया में घूले जाते हो।
जल बिना जीवन असम्भव क्यों भूला ये समाज है?
बूंद-बूंद हमने ...............
ताल-तलैया आहर-पोखर सबको इंसां लील गया।
ऐसा करने की सजा भी हम सभी को मिल गया।
झील-नदियां हो दूषित सब रो रहे क्यों आज है?
बूंद-बूंद हमने ...............
भूमिगत जल हल नहीं उसको भी दूषित कर दिया।
सबसे निचला तल को नल-जल योजना से भर दिया।
कैसे सुलझेगी समस्या ? ये तो बढ़का राज है।
बूंद-बूंद हमने ...............
खुद लगाकर आग हम पानी को ढूंढे फिर रहे।
मिल गया जो पानी, आग बुझाने का मन फिर गये।
इंसान जैसा मूढ़ नहीं कोई खुद गिराता गाज है।
बूंद-बूंद हमने ...............
अजीत कुमार
गुरारू, गया, बिहार
9097185840
गोपालराम गहमरी पर्यावरण सप्ताह 30 मई से 05 जून में आप सभी का स्वागत है | ||
0 टिप्पणियाँ