प्रवेश की रचना पिता

  पापा जी
झंझावतों ने घेर लिया है,
हिम्मत बढ़ाओ पापा जी।
याद आपकी बहुत सताती,
 वापस आ जाओ पापा जी।।


साथ थे जब तक आप हमारे,
कोई चिंता नहीं थी मुझको।
मुश्किल आती जब भी मुझ पर,                     
तुरंत हल कर देते थे उसको।।

मुसीबत में फिर आ फंसा हूं,
अब राह दिखाओ पापा जी।
याद आपकी बहुत सताती,
 वापस आ जाओ पापा जी।।


छोटी वाली पोती आपकी,
हर कमरे में ढूंढा करती है।
नहीं दिखते आप कहीं तो,
आपका फोटो घूरा करती है।।

इशारों में वो सबसे पूछे,
कहां गये मेरे दादा जी।
याद आपकी बहुत सताती,
 वापस आ जाओ पापा जी।।

सूना सूना कमरा लगता,
आपका बिस्तर भी सूना है।
छड़ी और चश्मे दिखते तो,
दर्द बिछुडने का दूना है ।।

आंखें बोझिल हो जातीं हैं,
ढांढस बंधाओ पापा जी।
याद आपकी बहुत सताती,
 वापस आ जाओ पापा जी।।


प्रवेश "अकेला", आगरा




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