रमा की कविता वफ़ा

ना कभी उसने ही वफा निभाई
ना ही कभी हम ही निभा पाए,
ना शिकवा उसने कभी की
ना हम ही शिकवा कर पाए,
कब जिंदगी रेत की तरह
मुट्ठी से फिसलती चली गई,
हम कुछ भी ना कर पाए
कुछ तो खोया हम दोनों ने,
मैंने चाहत गवाई तो
उसने बेहद चाहने वाला,
काश हम दोनों ने वफा
निभाई होती लेकिन नहीं,
वो अपनी राह चली गयी
हम अपनी राह निकल गए,
काश तुम लौट आती
काश ये ख्वाब सच होता।

रमा भाटी
 जयपुर
9928611164.


 

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