11 वर्षीय रीना विद्यालय से घर आकर कुर्सी पर चुपचाप बैठ गई। उसकी मां ने उसे देखा तो पूछा कि "क्या हुआ?" रीना ने कहा कि "मेरी कक्षा में दीपक नाम का लड़का है वह कभी-कभी विचित्र सा व्यवहार कर बैठता है। हालांकि वह बुरा नहीं है। आज भी अध्यापिका जी ने दीपक के साथ-साथ उसकी मां को भी कुछ भला-बुरा कहा था।" कुछ देर रूक कर रीना ने फिर पूछा कि "दीपक की मां को भला-बुरा क्यों कहा?"
रीना की मां ने रीना को सामने बैठाकर बड़े प्यार से समझाते हुए कहा कि "संतान के व्यवहार का पहला उत्तरदायित्व उसकी माता और फिर पिता का ही होता है। अगर वह गलत व्यवहार करता है तो कहीं न कहीं माता पिता की भी कमी है।"
रीना समझ नहीं पाई और उसने मां से फिर पूछा कि "ऐसा क्यों होता है मां?"
उसकी मां ने कहा कि "किसी भी स्त्री के लिए संतान पैदा करना अपने आप में बड़ा योगदान है। लेकिन उसके ममत्व के अभाव में मातृत्व पूर्ण नहीं हो सकता है। इसलिए कोई भी माता अगर अपने मातृत्व को आत्मिक, देहिक और सांसारिक पोषण से पूर्ण नहीं करती है तो उसका माता होना व्यर्थ हो जाता है।"
रीना ने कहा कि ऐसा क्यों? रीना की मां ने कहा कि"माता ही नव जीवन का आधार, प्रथम गुरु, पालक, संस्कारदाता और मानवता की निर्माता होती है। यदि वह ऐसा नहीं करेगी तो संतान कुछ भी सीख लेती है और भटक भी सकती है। दुनिया वाले उस संतान और उसके माता-पिता को ही भला-बुरा कहेंगे। इसलिए माता-पिता और बड़ों की बातों को जरूरी बताया जाता है।"
अब रीना की मां रसोई में चली गई और रीना विचारों में डूब गई। उसे लग रहा था कि माता-पिता ही इंसान को महान संस्कार दे सकते हैं। उसने सोचा कि क्या कोई माता से भी बड़ा है। शायद उसका इशारा ममत्व की ओर रहा हो।
रामअवतार स्वामी
पता: ग्राम-दोबड़िया, पोस्ट व तहसील-उनियारा,
जिला-टोंक, राजस्थान (304024)
मोबाइल नं. : 9982895876
0 टिप्पणियाँ