झुग्गी झोपड़ी में बाल्टी, मग, अनाज बाँटने के बाद जबरदस्त अंगडाई लेते हुए नेताजी अपनी घूमनेवाली कुर्सी पर बैठे ही थे कि सारसनाथ हाथ जोड़े आया -
सर, बचे हुए समान का क्या करना है? तुम सब कितने हो जी? नेताजी की कड़कदार आवाज गुंजी। तीन सर!
ऐसा करो, पाँच - पाँच किलो अनाज तुम सब अपने अपने लिये रख लो और बाकी मेरे बंगले पर पहुँचा दो। इस साल बाढ़ की तबाही ने हमारी तो चांदी कर दी। हम तो ठहरे समाज के सेवक, मिल बाँट कर खाने में जो आनंद है वो अकेले कहाँ? य़ह कह्ते हुए नेताजी आमदनी और खर्च का हिसाब लगाने लगे।
सीमा रानी
पटना
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