वन्‍दना की लघुकथा मॉं

टीवी में एक नाटक चल रहा था नाम था मां नायक बोल रहा था। एक मां ही भगवान का दूसरा रूप होती है, भगवान हर जगह नहीं रह सकतेहैं, इसलिए उन्होंने मां बनाया।इतना निस्वार्थ प्यार मां ही कर सकती है। ईश्वर भी मां के आगे नत मस्तक हैं। ईश्वर को भी एक बार मां के आगे शिशु का रुप ले ना पड़ा था।मां कैकेई को भी प्रभु राम ने महान बना दिया, प्रभु राम के साथ सभा चिल्लाई,सौ बार धन्य वह एक लाल की माई जिसने जना भरत सा भाई। एक मां बाप गुरु ही मन से ये चाहते हैं की बच्चे आगे बढ़े खुब आगे बढ़ते जाएं। बेटे को बनाने में मां का बड़ा हाथ होता है,मां जीजाबाई ने शिवाजी को बनाया था। प्रथम शिक्षा मां ही देती हैअक्षरों का ज्ञान गिनती का ज्ञान मां देती है अनपढ़ मां भी बच्चों को योग्य बना देती है। ये सब बातें सुनकर कर अनुपम की की आंखों में आंसुओं की बड़ी बड़ी बुंदे टपक पड़ी।जबतक मां थी उसने उसकी कोई कद्र नहीं की अब मां दूर है क्योंकि अब कोई रोकने टोकने वाला नहीं कोई नहीं जबरदस्ती खिलाने वाला बासी खाना खा रहा  है झट से मां फ़ोन मिलाया और अपनी की गलतियों की मीठी मांगी। मां ने माफ किया और जल्दी आनै का वादा किया।

वन्दना त्रिपाठी


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