ए राही तुम ठहरो ज़रा -अमित



क्यों अपने हुए पराए,
क्यों रूठा हुआ जमाना!
ए राही तुम ठहरो जरा,
तेरा कोई नही ठिकाना!!

अब राह में शूल कौन बिछाए,
कौन बिछाए फूल!
ये कैसी नादानी तेरी,
ये कैसी तेरी भूल!!

जाना है बड़ी दूर तुझे,
पर बाट है अंजाना!
ए राही तुम ठहरो जरा,
तेरा कोई नही ठिकाना!!

ये मंजिल उसी की ये दुनिया उसी का,
ये सब संसार पराया है!
क्या है तेरी मनोकामना,
और ये कैसी तेरी काया है!

सबकुछ देकर आज भी तू,
बना है आज बेगाना!
ए राही तुम ठहरो जरा,
तेरा कोई नही ठिकाना!!

#अमित_पाठक_उन्मुक्त

#खड्डा_कुशीनगर


 

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