रमा की लघुकथा पोटली


भरी दोपहरी में धूल भरी लू चल रही थी। सुखे पत्तों की सरसराहट सुनसान गलियां घरों के दरवाजे बंद ।अचानक गली के पीछे वाली संकरी गली में एक छोटा दरवाजा खुला, किसी ने गली के दोनों और झांका और जल्दी से हाथ में पकड़ी पोटली को अपने आंचल से ढका और तेजी से गली की दूसरी तरफ तेज कदमों से चलती हुई दोनों तरफ निगाह रखे थी।

सड़क पर आवाजाही ना के बराबर थी, उसने जल्दी से सड़क के उस पार जाकर एक बहते नाले के पास दोनों तरफ देख पास ही एक झाड़ी के पीछे पोटली को नीचे रखा और जल्दी जल्दी वापिस उसी रास्ते से गली में मुड़ गई। इस बात से बेखबर की दो निगाहें लगातार उसका पीछा कर रही हैं। जब पीछा करने वाली निगाह वाले ने जाकर देखा तो पोटली में एक अर्ध विकसित मांस का  लोथड़ा था। उसकी निगाहें खुली की खुली रह गईं।


रमा भाटी
मानसरोवर
जयपुर 302020 राजस्थान


 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ