'माँ आप हमेशा सब्जियाँ धोती है,और उसका पानी इकठ्ठा करती है,क्यूँ'? सुखी ने पूछा। ' अरे! पानी को मैं बर्बाद नहीं करती ,इसे एकत्र कर गमलों में डाल देती हूँ,और पशुओं के लिये रखें बर्तन में डाल देती हूँ,' माँ बोली । सुहानी के मन मस्तिष्क में विचारों की श्रृंखला अनवरत चल रही थी ।लोग कितना पानी बर्बाद करते हैं।और जिनके यहाँ पानी की कमी है ,उन्हें कितने दूर से पानी लाना पड़ता है। पर.......लोग तो समझते नही।पर माँ की बात उसे समझ आ गई। वह भी पानी गिलास में या बोटल में बचता उसे एक बर्तन में इकठ्ठा कर देती। और जब जरूरत होती वहां उसका उपयोग करती। माँ की एक सीख से उसकी जिन्दगी बदल गई।
डा राजमती पोखरना सुराना
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