पर्यावरण पर कविता

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बनने दो उस नन्हे पौधे को बृक्ष विशाल ...
मत काटो उसकी टहनियो को
जो झूम करती है बसंत का इंतजार...

आधुनिक युग मे बदल रहा संसार पर मत बदलो पर्यावरण की हरयाली को...

जीने दो उन मासूमों को..
जिनका आस्याना है ये पेड़ जंगल और पहाड़...

जीने दो उन नन्ही कलियों को
लेहराने दो फूलो और फलो से लदे पेड़ो को..


अब भी वक़्त है
आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण बचाये..
मिल कर पेड़ लगाए..

ताप्ती धरती माँग रही छाव...

अब भी वक़्त सम्हाल जा इंसान .
ज़ब वक़्त बीत जायेगा तब करने को कुछ ना शेष होगा...


 वरष रही होंगी अग्नि जब अम्बर से...
तड़प रहे होंगी ज़िन्दगीया पानी की आस मे..
टूट रही होंगी सासे  प्यास मे .
तब तुम्हारी नजरें जाएगी कटी हुई पेड़ो पर बंजर हुई जमीनों पर ...
फटी  सड़को पर..

 ज़ब आग  की लपेटो सी चलती हवाओ  झुलस रहा होगा तन बदन
तब यकीन मानो कुछ भी शेष  होगा..
होंगी नहीं ज़ब हरयाली पछियो के रहने को...

धुप से तड़पते जंतुओ की... हाय मिलेगी तुमको...
पर ना मिलेगा सास लेने को शुद्ध वायु...

मत काटो इन हरियालियों को...
बढ़ने दो उन पेड़ो को जो गंगन चुबी इमरतो के लिए  हो रही बलिदान ...

तपती धरती माँग रही हरयाली..
अब भी वक़्त  है सम्हाल जा इंसान...
 
बीत जायेगा ये वक़्त तब कुछ  भी शेष ना  होगा...
यक़ीनन फिर तेरा इंसान होना भी विशेष ना होगा...

कुमारी कृ‍ती अमृता "आशा "
वाणिज्य स्नातक
जमालपुर कॉलेज जमालपुर
मुंगेर बिहार


 

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