धन्य धरा का धाम - लक्ष्‍मण प्रसाद

गंगा अवतरण दिवस - गंगा दशमी पर सर्जित -
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गौमुख से सागर तट जिसका, अधरों पर है नाम ।।
हर हर गंगे माता तुझको, हम सब करें प्रणाम ।

चिंता हरता कौन सगर की,दे पुत्रों को मोक्ष।
माँ गंगा के तीव्र वेग को, रोके कौन परोक्ष।
भूप भगीरथ के तप से ही, हो पाया उद्धार ।
रोक सके केवल त्रिपुरारी,तीव्र वेग का भार।
महादेव ने सुरसरि को तब,लिया जटा में थाम ।
हरहर गंगे माता - -

गर्म ज्येष्ठ का दिवस दशहरा,गंगा का अवतार
महादेव माथे से उतरी,शीतल लिए बहार ।।
सद्प्रयास हुए भगीरथ के,हरने को संताप ।
सुरसरी माता पतित पावनी,हरे मनुज के पाप ।।
कपिल-मुनि के निर्देशों से, हुए भगीरथ काम।
हरहर गंगे माता  - -

सुरसरि मंदाकिनी जाह्नवी,भारत की पहचान
सरस अमिय निर्मल जलधारा,करें सभी हम पान।।
चारों प्रयाग नीरामृत पाकर,बने तीर्थ के धाम
हर प्राणी की भष्म अंत में,पाती वही मुकाम।
जिसके पुण्य सलिल से पोषित,धन्य धरा का धाम
हर हर गंगे माता तुझको,हम सब करें प्रणाम।

- लक्ष्मण लड़ीवाला 'रामानुज'
165,गंगौत्री नगर, गोपलपुरा, टोंक रोड़, जयपुर (राज.)- 302018
मो. 9314249608


 

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