गंगा पर किरण की कविता

    गंगा नमन  
स्वर्णिम आभा का मुकुट पहन,
माँ गंगा आज मुस्काई है।
करने चरण कमल में वंदन,
प्रथम रश्मि रवि की आई है।।

है मंद-मंद गति अति मंथर,
ले भाव ममत्व का आई है।
पादप विटप करें अभिनंदन,
धरा पर विष्णुपदी आई है।।

जीवन नैया है बीच भँवर,
भर बोझ पाप का लाई है।
कष्टों का है करने को वरण,
लो पतित पावनी आई है।।

अविवेकी मनुज कर ले प्रण,
बारी तेरी अब आई है।
न होने देगा कभी भी कम,
सुरनदी की अरूणाई है।।
 
किरण बाला (चंडीगढ़


 

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