पर्यावरण दिवस पर वन्‍दना त्रिपाठी की लघुकथा

पर्यावरण
‌"रवि कहां हो? कहां हो!
दोस्त मलय ने पुकारा।
" बताओ क्या कह रहे हो?
घर में कूड़ा ज्यादा हो गया है,  फेंकना है ना चलो मेरा साथ दो,बाहर गाड़ी खड़ी है वो जल्दी में था। मलय बोला मुझे बदबू और दुर्गंध बर्दाश्त नहीं होती कुत्ते और गायें भी घेर के खड़ी हो जातीं हैं, तुम फेंक आओ। ठीक है मैं जा रहा हूं महान पुरुष। मलय बोला पहले सामान छांटें अलग कर देते जो काम के सामने हो अलग कर देतें हैं। फिर फेंकेंगें दोनों छंटाई शुरू कर दिए, उसमें से प्लास्टिक के सामान अलग कर दिये जो पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाते,
और फिर कूड़ा फेंकने जाते।
श्याम जी मिले उनको भी समझाया गीला कूड़ा अलग रखें सूखा अलग और प्लास्टिक जो जमीन में नहीं लगता उसे अलग कर के फेंके नही तो आने वाला समय दुखद होगा जो वहां सुन रहे थे उनके समझ में भी कुछ आया सारे ने सहमति में सिर हिलाया और आपने अपने घर चले गये।

वन्दना त्रिपाठी 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ