प्रकृति के हैं अनेक उपहार ।
आओ हम सभी करें विचार।।
नदियों की है छटा निराली।
सूरज भी बिखराता लाली।।
धरती में हैं खनिज भंडार ।
अन्न उपज की यहाँ भरमार।।
चाँद सितारे हमें लुभाते ।
आसमान को ताज बनाते।।
जीवों का है अजब संसार ।
पेड़ करते सबका उपकार।।
खिलते सुंदर बगीचे-बाग़ ।
मस्त समीर गाती है राग।।
नहीं प्रकृति का कोई सानी।
हम सभी ने महत्ता जानी।।
प्रकृति को हमने बचाना है ।
मनमोहक इसे बनाना है।।
- हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा(हरियाणा)
मो.9354852064
सादर प्रणाम आदर
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