पूनम की लघुकथा व कविता

शीर्षक - शुरुआत स्वयं से

आज रवि बहुत दुखी था, क्योंकि उसका दोस्त राजू कह रहा था कि  "जंगलों में चरते हुए एक नाले का पानी पीने से  कल उसकी पांच गायों की जान चली गई ।
रवि 10 साल का है और पांचवीं कक्षा में पढता है ।  राजू उसके स्कूल के चपरासी का बेटा है और  साथ में पढता है। राजू के साथ रवि वो नाला देख आया । जिसका पानी पीकर गायों की जाने चली गयी । उसने देखा कि उस नाले का पानी बहुत ही गंदा और बदबूदार था ।रवि अपने पापा से-"पापा! नालों में पानी कहाँ से आता है ?"पापा-"फैक्ट्री से, घरों, दुकानों आदि से जो पाइप के जरिए नालों में बहा दिया जाता है । पर तुम क्यों पूछ रहे हो  ?""मतलब ये पानी जहरीला हो जाता होगा ?""हाँ ।" "तभी राजू की गायें .........।" रवि सोचने लगा । "क्या हुआ ?" पापा ने टोका । "अच्छा पापा! ये पानी कहाँ जाता है ?" "ये जाकर नदियों में मिल जाता है ।" "फिर तो नदी का पानी भी गंदा और जहरीला हो जाता होगा ?" "हाँ ये तो है ।" "हमलोग उसी गंदे पानी को पीते हैं ?" रवि ने भोलेपन से कहा ।
"नहीं बेटा! हमलोग उसे फिल्टर करके पीते हैं ।"
"पर सभी तो ऐसा नहीं कर पाते होंगे ? और पशु-पक्षी, पेड़-पौधे ? इन्हें कहाँ से साफ पानी मिलता होगा ?"
"बात तुम्हारी सही है ।"
"पापा क्या ऐसा नहीं हो सकता कि नालों का पानी नदी में मिलने के बजाय कहीं और जाए ?"
"हाँ हो सकता है बेटा । उसे साफ करके पीने के बजाय दूसरे कामों में उपयोग में लिया जाय । कुछ जगहों पर ऐसा हो भी रहा है ।"
"कुछ क्यों ? सभी जगहों पर क्यों नहीं पापा ?"
बहुत ही गंभीर होकर कहा रवि ने ।
"हाँ बेटा सभी यदि इसे अपनी जिम्मेदारी समझें तो जरूर हो सकता है ।"
"पापा क्यों न हम स्वयं से शुरुआत करते हैं ?"
"बिल्कुल बेटा ।" रवि के पिता ने बेटे को चूमते हुए कहा ।
फिर अपना मोबाइल निकाल कर अपने मैनेजर से--"जीतेन्द्र जी अपने फैक्ट्री के पास देखिये  वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट कहाँ पर लग पाएगा ।"

पिता पर कविता
घर के मजबूत
स्तम्भ होते हैं पिता,
बच्चों की ताकत हैं पिता,
भविष्य की उम्मीद हैं पिता,
संघर्ष की धूप में
छत्रछाया हैं पिता,
पथप्रदर्शक हैं पिता,
कंटक भरी राहों में
मजबूत साया हैं पिता,
माँ की पदचाप हैं पिता,
माँ की आवाज हैं पिता,
हर नाउम्मीद पर
ढाढ़स हैं पिता,
बच्चा यदि पिता की लाठी है,
तो उस लाठी की मजबूती हैं पिता,
घर,परिवार
और बच्चों की नींव हैं पिता,
पिता के लिए जितना कहें
वो कम है क्योंकि
उनसे ही तो अस्तित्व है हमारा ।
पिता को मेरा सादर नमन

        --पूनम झा 'प्रथमा'
          जयपुर, राजस्थान


 

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