लहर लहर लहराई गंगा
कल कल बहती रहती गंगा ।।
धरा को पावन करती है।
सबके पाप मिटाती है गंगा ।।
भोर की किरणे पावन गंगा को स्पर्श करती है।
गंगा की पावनता को छूकर धन्य होती है ।।
गंगा सबको अपने आगोश में लेती है भेदभाव नहीं करती।
अपने हर भक्तों को आशीर्वाद देती है।।
हिमालय से निकाल कर धरती को शीतल करने आई।
पापियों के पाप मिटाने भव सागर पार कराने आई।।
लोगों की अपवित्रता देख मन खिन्न हुआ है ।
फिर भी अपना पावन जल सबको देने आई।।
सूरज की किरणे भोर में लालिमा से स्वागत करतीं।
गंगा जल में सुंदर सा अपना अक्स देख खुश होती।
सांझ की विदाई का सुनहरा प्रकाश।
गंगा की पावनता में चार चांद लगाती है।।
सुबह शाम गंगा का रूप सब को मोहित करता है ।
बहुत विशाल व्यक्तित्व है सब को प्यार करती है ।।
नाविक अपनी नौका चला जीवन यापन करते है ।
गंगा अपने मृदुल जल से सबकी प्यास बुझाती है ।।
अलका पांडेय मुंबई
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