मंजू की लघुकथाएं

कैसी शादी
"शादी… और तुमसे..?जो लड़की शादी से पहले ही..हमबिस्तर…?पता नहीं कितनों के साथ….",
रोहन की बात सुनते ही दोनों हाथ कानों पे रख चीख़ उठी थी मधु,
"रोहन….बस …..",बिना कुछ और कहे वो रेस्तरां से बाहर निकल आई।उसके ज़ह्न मे वो दृश्य घूम गया जब रोहन ने उस दिन होटल का कमरा बुक कराया था।
"बाहर बैठ कर ही बात करते हैं न",मधु ने कुछ असहज होते हुए कहा तो रोहन ने बड़ी आत्मीयता से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा,
"तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है क्या"?
"रोहन...तुम पर तो मुझे ख़ुद से भी ज़्यादा विश्वास है",
पर वही विश्वास जब कमरे के एकांत मे उसे टूटता नज़र आया तो वो परेशान हो उठी.."रोहन… शादी से पहले मुझे ये सब…"
पर रोहन की वासना के ज्वार ने उसे आगे बोलने ही कब दिया,
"रानी....शादी से पहले या बाद...क्या फ़र्क पड़ता है...दुल्हन तो तुम मेरी ही बनोगी न"।कुछ ख़ौफ़ और कुछ बदनामी के डर से मधु उस होटल के कमरे मे असहाय सी अपना कौमार्य खो बैठी।पर रोहन ने उसे दिलासा दिया,"हम जल्दी ही शादी कर लेंगे"।
रोहन जिस आफिस मे जूनियर इंजीनियर था उसी मे मधु एकाउंट्स मे थी।दोनों की दोस्ती एक साल से चल रही थी… और एक तरह से उनके बीच शादी भी तय थी।मधु उस आफिस की सबसे खूबसूरत लड़की थी।रोहन के ज्वाइन करने से पहले आफिस के हर मर्द की नज़र मधु की ओर रहती थी पर रोहन से प्रगाढ़ता के बाद सब चुप हो गए थे।
उस घटना के बाद मधु ने आखिर कह ही दिया, "रोहन….शादी की तारीख़ …."
पर रोहन का जवाब सुन कर वो सन्न रह गई।
दूसरे ही दिन उसने रोहन से संबंध तोड़ने की चर्चा आफिस भर में कर दी।कारण था,'रोहन ने उससे गलत संबंध बनाने की कोशिश की'।यहाँ तक कि बास तक भी ये बात पँहुचाने में उसने कसर नहीं छोड़ी।और अगले दो दिनों में ही रोहन की आफिस में वो छवि खराब हुई कि आज उसे मजबूरन मधु के पास आना पड़ा।
"मधु...मुझे तुमसे कुछ बात करनी है",
"पर मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी",मधु ने फाइलों पर दस्तखत करते हुए लापरवाही से जवाब दिया।
"वो शादी की… तारीख..",
"किससे शादी…?कैसी शादी ..? जो लड़का शादी से पहले ही लड़की के साथ विश्वासघात…",ऊंचे स्वर में कहा गया वाक्य मधु ने जानबूझकर अधूरा छोड़ दिया पर तब तक आफिस के सारे कान उनकी टेबल तक आ पँहुचे थे।
मंजू सक्सेना 
लखनऊ
बहू बनाम बेटी"
"आपकी बेटी माला को हम बहू नहीं बेटी बना कर रखेंगे",उमेश जी ने अपने होने वाले समधी से कहा तो माला की माँ तृप्ति तुरंत हँस कर बोल उठी,
"बेटी बना कर क्यों?... बहू बना कर क्यों नहीं ?",
इस अप्रत्याशित हमले से उमेश जी के साथ बैठी उनकी पत्नी रीता भी जैसे घबरा गयीं,
"मेरा मतलब है... ",उन्होंने बोलना शुरू किया ही था कि तृप्ति फिर बोल उठी,
"समधन जी..आप के अंदर अगर ममत्व है तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप सास हैं या माँ..और अगर मैंने अपनी बेटी को अच्छे संस्कार दिये हैं तो वह जितनी अच्छी बेटी है उतनी ही आदर्श बहू भी बनेगी।बेटी के संस्कार मैंने दिये हैं बहू के आप सिखा देना..और हाँ वो आपके ख़ानदान की बहू बन कर मर्यादित होगी बेटी बन कर नहीं"।
मंजू सक्सेना
लखनऊ

 

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

Manju Saxena ने कहा…
धन्यवाद 🙏 मेरी लघुकथाएं प्रकाशित करने के लिए