नरेश की कविता पिता


निज सन्तति हित सदा मौन रह,
दुःख विपदा को कभी नहीं कह,
शान्त  खड़ा  कर्तव्य   मार्ग  पर,
पाँव    नहीं    जो    डिगाता  है।
 वही पिता कहलाता है।

कष्टों    में    बिन    नीर   बहाए,
जमकर   अपने   फ़र्ज  निभाए,
अपनों की  खुशियो की खातिर,
हर    गम   खुशी  से  सहता  है।
वही पिता कहलाता है।

पिछली और अगली  भी  पीढ़ी,
बनता   वह   दोनों    की   सीढ़ी,
दोनों  को  ऊँगली  से  पकड़कर,
जो     पग     राह    दिखाता  है।
 वही पिता कहलाता है।

 चाह    तनय   की   पूरी  करता,
तनया     पर     स्नेह    बरसता,
वनिता  को  दे  प्यार, मातृ और
पितृ    चरण     जो    छूता   है।
 वही पिता कहलाता है।
     
नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड। 89541 40998



 

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